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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी चतुर्थ प्रश्नपत्र - कथा-साहित्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2680
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी चतुर्थ प्रश्नपत्र - कथा-साहित्य

प्रश्न- गोदान की औपन्यासिक विशिष्टताओं पर प्रकाश डालिए।

अथवा
गोदान के औपन्यासिक वैशिष्ट्य का विवेचन कीजिए।

उत्तर -

हिन्दी उपन्यासं जगत में प्रेमचन्द का अभिर्भाव साहित्य को जीवन से जोड़ने का बीज लेकर हुआ था। गोदान उनकी सर्वाधिक सामाजिक यथार्थवादी साहित्यिक कृति है जिसमें स्वतन्त्रता-पूर्व भारतीय कृषक समाज की समग्रता को व्याख्यायित किया गया है। जीवन की समस्याओं, विभीषिकाओं, विसंगतियों और वितृष्णाओं की व्याख्या में प्रेमचन्द भारतीयता की आत्मीय दृष्टि को कभी विस्मृत नहीं करते जीवन के सम्यक विवेचन और विश्लेषण के कारण उनका यह उपन्यास कलेवर की व्यापकता, मानवीय मनोभावों की कोमलता-कठोरता, भाषा की उत्कृष्टता और साहित्य की सामाजिक उपादेवता की दृष्टि से अतुलनीय है। 'गोदान' के वैशिष्ट्य निरूपण में गोदान की समीक्षा क्रमशः इन बिन्दुओं पर विचारोंपरान्त ही ग्रहण किया जा सकता है।

जीवन की समग्रता - प्रेमचन्द आस्था और संघर्ष के उपन्यासकार है गोदान में जिस कृषक समाज का वर्णन है उसे समग्र रूप में धारण करते हुए ही कथाकार ने सामाजिक अव्यवस्था आर्थिक विपन्नता, धार्मिक आडम्बर, राजनीति दाँव-पेंच और सांस्कृतिक लोक व्यवहार की चर्चा की है। सम्पूर्ण कथा में समस्याओं का देश निरूपण हुआ है। तत्कालीन कृषक समाज के शोषण में रत जमींदारों, पटीदारों महाजनों और पूँजीपतियों की कथा हो या समस्त परिवारों के दायित्वों और देशों देशों की कथा हो, प्रेमचन्द की दृष्टि समस्याओं के मूल करण तक पहुँचकर उसे अनाहत करने में संलग्न रही है गाँवों में व्याप्त पापाचारों, व्याभिचारों, अत्याचारों और अनाचारों की अभिव्यक्ति तो तथ्यपरक है ही, सदाचारों के प्रतिफलन में भी व्यवहार ने मन रमाया है। भोग-विलास हास-परिहास, सभा-सोसाइटी के प्रसंगों और प्रेम-परिपाकों में डूबे उच्च वर्गों का चित्रण सामाजिक समस्याओं और पारिवारिक दायित्वों का बोझ ढोता हुआ कृषक वर्गों का वर्णन पात्रों और उनके व्यक्तित्वों नामकरणों, वेश-भूषा परिवेशों का अनावरण और कथा विकास की अर्थक्ता को प्रभावशाली बनाने वाली जीवानुभूतियों के वर्णन में भी उपन्यासकार प्रेमचन्द ने सामाजिक जीवन की सम्पूर्णता, समग्रता और तथ्यात्मकता को अर्थवान बनाया है। जीवन की कुरूप मान्यताओं को सुन्दर बनाने की कला और सुन्दर जीवानुभूतियों से उत्पन्न स्वस्थ मानसिकता को साहित्य का वर्ण्य विषय बनाकर प्रेमचन्द ने 'गोदान' को कलात्मक श्रेष्ठता प्रदान की।

कथानक की असाधारणता - गोदान के वैशिष्ट्य में उसके कथानक का अलग ही महत्व है। होरी जैसे साधारण शारीरिक गठन वाले और वेशभूषा वाले किसान की जीवन गाथा में पात्र एक गाय पाने की लालसा है। इस अति सामान्य सी लालसा के पीछे संघर्ष की न खत्म होने वाली कहानी व्यंजित है जिसमें होरी और उस जैसे किसानों की लालसाओं की हत्या ही नहीं होती वरन् स्वयं ऐसी लालसा की पूर्ति में उनकी हत्या हो जाती है इस प्रकार 'गोदान' का कथानक भारतीय किसानों की संघर्ष-गाथा है जिसमें समाज में व्याप्त शोषण वृत्ति को हर स्तर पर न केवल उभारा गया है। अपितु इससे उत्पन्न सामाजिक वैषम्य, सामान्य जन-जीवन के नैराश्य और वैकल्प को भी सफल अभिव्यक्ति मिली है। कथा की स्वाभाविक गति में उसकी अर्थवत्ता स्थिरता देने में कुछ ऐसी उपकथाओं यथा मेहता मालती, खन्ना गोविन्दी आदि प्रसंगों की योजना की गयी है जिसके माध्यम से कथाकार ने प्रेम, विवाह, साहित्य, सेवा राजनीति और नारी चैतन्य जैसे विषयों पर अपने विचार भी प्रेरित किये हैं। इस तरह 'गोदान' का कथानक एक साधारण नायक की अतिसाधारण कामना पूर्ति में किये गये संघर्ष की कथा है जिसकी गंभीरता में समग्र कृषक जीवन की सांसे फूलती है सामाजिक अव्यवस्थाओं से उपजी हुई मानसिकता में धार्मिक पापों चारो का गर्म बाजार बोलता है राजनीतिक उथल-पुथल से उद्बद्ध पीसी जाती हुई मानवीय मान्यताओं का नारा बुलन्द होता है। आर्थिक विपन्नता में सड़ता हुआ मध्यम और निम्न मध्यमवर्गीय समुदाय सिसकता है। कथानक की इस गुरु-गम्भीर गुणवत्ता में ही समाज का समग्र रूप अपना दंश उगलता है।

पात्रों परिवेशों, परिस्थितियों की सम्पूर्णता - गोदान के पात्रों की महत्ता में और गुणवत्ता दोनों ही अर्थों में स्वीकार की जा चुकी है। ग्रामीण पात्र, नगरीय पात्र और इन दोनों के बीच कथाकार प्रेमचन्द की भूमिका से तत्कालीन समाज को सम्पूर्ण परिवेश के साथ उपस्थित किया गया है। प्रेमचन्द की कथा, पात्रों का परिचय देने उनके व्यक्तित्व को स्थापित करने और परिवेश का चित्र प्रस्तुत करने में अहम भूमिका निभायी हैं, वहाँ उनके पात्रों ने अपनी भोगी हुई जिन्दगियों की अर्थवत्ता को अभिव्यक्त करने में कथाकार की असीम सहायता की है पात्रों के नामकरणों के द्वारा ही जहाँ उनके आर्थिक, सामाजिक स्थितियों का पता चल जाता है। वहीं - उनके वार्तालापों, संवादों से सम्पूर्ण ग्रामीण-समाज की आस्थाऐं - अवस्थाऐं जाग उठती है प्राकृतिक परिवेश की सौन्दर्यमयता तो केवल एक वर्णन में ही समझा जा सकता है। "फागुन अपनी झोली में नवजीवन की विभूति लेकर आ पहुँचा था आम के पेंड़ दोनों हाथों से वौर की सुगन्ध बांट रहे थे। और कोयल आम की डालियों में छिपी हुई संगीत का गुप्त दान कर रही थी।' स्पष्ट है कि परिवेश वर्णन में प्राकृतिक सौन्दर्य भी है और कलात्मक साहित्य-सौन्दर्य भी। उसी प्रकार परिस्थितियों की वर्णनात्मकता में तत्कालीन कृषक-समाज विदेशी सरकार को अत्याचारों, जमीदारों, पाटीदारों और महाजनों के शोषण अपराधों किसानों की भोली वृत्तियों का फायदा उठाने वाले साहूकारों, पुलिसों, दलालों की राम कथा की यथार्थपरक अभिव्यक्ति हुई है।

शिल्पगत विशिष्टता उपन्यास के शिल्प का कलात्मक स्वरूप अत्यधिक महत्व का है शिल्प उपन्यास की श्रेष्ठता में वह साधन बनता है जिसके द्वारा उपन्यासकार कथानक को विकास देता है जो उददेश्य की पूर्ति में सहायक तत्व है। गोदान के शिल्प पर डॉ. गोपाल राय ने विचार व्यक्त करते हुए दृश्यात्मक और परिदृश्यात्मक प्रविधियों का उल्लेख किया है जिसमें एक ओर कथाकार स्वयं अपने द्वारा कथा संगति को विस्तार देता है पात्रों और उनके परिवेश की व्याख्या करता है और यदा-कदा किस्सागों के रूप में आकर कथा से सहृदयों (पाठकों) का परिचय कराता है तो दूसरी ओर स्वयं अपे को नेपथ्य में रखता है और हम स्वयं कथा की गति के साथ-साथ आगे बढते रहते हैं।

चरित्रांकनों में सूक्ष्म मनोवैज्ञानिकता का पुट देकर प्रेमचन्द ने अपनी निजला का ज्ञापन भी दिया है। और चरित्रों की अपनी विशेषताओं का वर्णन भी किया है। उसी प्रकार ग्रामीण चित्रों को परिवेश की सम्पूर्णता के साथ जिस दृश्यात्मकता से वर्णित किया गया है। वह 'गोदान' शिल्प की नितान्त निजी विशेषता है।

भाषा-शैली की उत्कृष्टता - यद्यपि भाषा स्वयं में शिल्प विधान के अन्तर्गत आती है। लेकिन भाषा वैशिष्ट्य के रूप में प्रेमचन्द के सर्वथा नवीन प्रयोग की सोद्देश्यता को देखते हुए इसे अलग ही अर्थ प्राप्त है। प्रेमचन्द की भाषा जन भाषा थी। गोदान की भाषा जन भाषा है। गाँवों में निवास करने वाले जन समुदाय के मन में विकार नहीं होते उनका प्रेम, प्रेम होता है। उनकी घृणा जिस मनोभावों का उदय जिस प्रकार होता है, भाषा उसके अनुरूप स्वतः अपना रूपाकार ग्रहण कर लेती है। यही कारण है कि प्रेमचन्द ने गोदान में जिस भाषा का प्रयोग किया है। वह अपनी सरलता, सुगमता, सुबोधता और स्पष्टता में जीवन के वैविध्य को मानवीय, क्रिया-व्यापार को, विचार और सिद्धान्त को वहन कर पाने में पूरी तरह सक्षम है। अलंकारों, मुहावरों, कहावतों का प्रयोग जहाँ उनके मानसिक तरंगों को अभिव्यक्त करने में सक्षम है वहाँ सांस्कृतिक-लोकाचार व्यवहार का दिग्दर्शन कराने में भी उनकी महत्ता स्वीकारी गयी है। उसी प्रकार शब्द चयनों में भी प्रेमचन्द ने तद्भव, देशज, तत्सम, उर्दू, फारसी और अंग्रेजी शब्दों का इतना सार्थक प्रयोग किया है कि उनके अर्थ और गुण ध्वनि और प्रभाव ढेर सारी अभिव्यक्तियाँ व्यक्त करती हैं। ग्रामीण पात्रों के द्वारा प्रयुक्त देशज, स्थानीय और तद्भव शब्दों द्वारा जहाँ उनके व्यक्तित्व का सरल हृदय द्वार झलक पड़ता है वहाँ उनके उर्दू फारसी के अपभ्रंश रूपों और अंग्रेजी के तोड़- मरोड़ कर बनाए गये शब्दों में नकी वैचारिक उन्नति का संकेत मिलता है। नागरिक पात्रों की रुचि-अभिरुचि, ने की वेदी संस्कार गत अच्छाइयों-बुराइयों का परिचय कराने में प्रयुक्त शब्द- शक्तियों को नकारा नहीं जा सकता छोटे-छोटे सरल एवं संयुक्त वाक्य-योजना का सार्थक प्रयोग पात्रों का परिचय उनके व्यक्तित्व गठन अभिरुचियों एवं मानसिक चेतना को ही अभिव्यक्त नहीं करते अपितु उनके बहुअर्थी प्रयोग में परिवेशों, परिस्थितियों और पात्रों के साफल्य-दोर्बल्य का प्रस्तुतीकरण भी सफल हुआ है।

नामकरण की सार्थकता - प्रेमचन्द सजग उपन्यासकार थे। उनकी दृष्टि में समाज की विसंगतियों वह भयानक नाग था। जिसका दंश पाकर होरी जैसाकिसान संघर्षरत जीवन जीने को बाध्य होता है और अन्ततः हाथ लगी निराशा के असहाय थपेड़ों से चकनाचूर होकर मृत्यु का वरण करता है। इस तजन्य संघर्ष और पराजय से मृत्यु प्राप्त होरी की गाय पाने की जीवन कांक्षा की क्षतिपूर्ति के लिए ही प्रेमचन्द ने 'गोदान' शीर्षक से इस उपन्यास को मंडित किया है। यद्यपि इसके विशेषार्थ में प्रेमचन्द ने सामाजिक व्यवस्था में पिसे जा रहे - कृषक जीवन मूल्यों की रक्षा सोचते हुए उस व्यंग्य का निदर्शन भी किया है। जो सामान्य जीवन की आवश्यकताओं से वंचित किसानों को उपलब्ध होता है दूसरी ओर धर्म प्रधान भारत में कृषि प्रधान सांस्कृतिक गरिमा की प्रतीति किसानों के गो-पूजन, गो-रक्षण और गो-पालन में ही समझी जाती है। विवाह के अवसर पर या मृत्योपरान्त गो-दान की परम्परा का निर्वाह आज के आधुनिक भारतीय गाँवों में भी आस्था पाता है गोदान का होरी अपने जीवन के तमाम दुःख केवल इस भ्रम में झेलता है कि उसके द्वार पर बंधी गाय के दर्शन ही उसे तमाम खुशियाँ दे जायेगी। इसकी प्राप्ति में होरी का संघर्ष उन तमाम कर्जों, दुःखों और चिन्ताओं को भूल जाता जो उसके वर्तमान परिवारिक जीवन को प्राप्त होते हैं। विश्राम की छांव में घबराता हुआ यह साधारण किसान अपनी साधारण इच्छा को प्राप्त नहीं हो पाता इस विडम्बना के मूल में स्वार्थी समाज के शोषण तृप्ति का भयानक अजगर ही तो है। इस प्रकार 'गोदान' शीर्षक कथानक की अर्थवत्ता कथानकर की अकांक्षा कृषक वर्ग की जीवन-कामना की अनुपलब्ध महात्वाकांक्षा की सच्ची उपलब्धि को सार्थकता प्रदान करता है।

सौददेश्यता - साहित्यिक रचना का आधार किसी न किसी परिधि पर पर ही आश्रित होता है। साहित्य की सोददेश्यता के अगुवा है - प्रेमचन्द। साहित्य-साधना उनकी कल्पना उड़ान नहीं है। प्रेमचन्द ने जिस सामाजिक जीवन की विसंगतियों वितृष्णाओं के भँवर में फँसी हुई मानवास्था को अपने उपन्यास 'गोदान' के माध्यम से आवाज दी है। उसका उददेश्य बहुत व्यापक है। कथा नायक होरी साधारण किसान है वह महत्वाकांक्षा (गो-पालन) से जीवन की गति में संचालित मात्र नहीं होता, संघर्षरत भी होता है।

मालिकों की जी हुजूरी करने वाला होरी अपनी महत्वाकांक्षा के लिए कुछ भी कर सकता है विवेकशून्य होकर उसने भोला से गाय प्राप्त की ओर संज्ञायुक्त होकर उसे गाय की मृत्यु का दुःख झेल लिया। उसकी गाय प्राप्ति की इच्छा मरी नहीं, बलवती हो गयी, मंगल का स्वास्थ, गोबर का स्वास्थ्य, ग्रह शोभा किसानों की मरजाद पता नहीं कितने विचारों का समूह उसकी इस महत्वाकांक्षा पूर्ति के साधन थे। वह संघर्षरत होता है, श्रम-सीकर से थक जाता है, टूट जाता है। आठ आने रोज के हिंसाब से ईंट, कंकड़ होता है, सुतली कातता है। पेट की ज्वाला दबाता है - केवल गाय प्राप्ति की लालसा में। वाहः मनुष्यः वाह मानवास्थाः वाहः आशा, उत्साह, उल्लास की कर्मसाधना में डूबा हुआ नायक, लेकिन आहः - असफलता - असंतोष - मृत्यु। प्रेमचन्द ने गोदान की सोद्देश्यता पर कभी चर्चा नहीं की लेकिन कथाकार की अन्तिम रचना और कथा नायक की अन्तिम इच्छा की परिणति मृत्यु की स्वीकृति है। स्मरणीय है।

प्रेमचन्द की मृत्यु और होरी की मृत्यु ने ही प्रेमचन्द को न केवल हिन्दी साहित्य में अमर कर दिया बल्कि विश्व साहित्य में अमर कर दिया और होरी की महत्वाकांक्षा तो विश्व साहित्य में अमरता का मुकुट पहने सुशोभित है।

 

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- गोदान में उल्लिखित समस्याओं का विवेचना कीजिए।
  2. प्रश्न- 'गोदान' के नामकरण के औचित्य पर विचार प्रकट कीजिए।
  3. प्रश्न- प्रेमचन्द का आदर्शोन्मुख यथार्थवाद क्या है? गोदान में उसका किस रूप में निर्वाह हुआ है?
  4. प्रश्न- 'मेहता प्रेमचन्द के आदर्शों के प्रतिनिधि हैं।' इस कथन की सार्थकता पर विचार कीजिए।
  5. प्रश्न- "गोदान और कृषक जीवन का जो चित्र अंकित है वह आज भी हमारी समाज-व्यवस्था की एक दारुण सच्चाई है।' प्रमाणित कीजिए।
  6. प्रश्न- छायावादोत्तर उपन्यास-साहित्य का विवेचन कीजिए।
  7. प्रश्न- उपन्यास के तत्वों की दृष्टि से 'गोदान' की संक्षिप्त समालोचना कीजिए।
  8. प्रश्न- 'गोदान' महाकाव्यात्मक उपन्यास है। कथन की समीक्षा कीजिए।
  9. प्रश्न- गोदान उपन्यास में निहित प्रेमचन्द के उद्देश्य और सन्देश को प्रकट कीजिए।
  10. प्रश्न- गोदान की औपन्यासिक विशिष्टताओं पर प्रकाश डालिए।
  11. प्रश्न- प्रेमचन्द के उपन्यासों की संक्षेप में विशेषताएँ बताइये।
  12. प्रश्न- छायावादोत्तर उपन्यासों की कथावस्तु का विश्लेषण कीजिए।
  13. प्रश्न- 'गोदान' की भाषा-शैली के विषय में अपने संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
  14. प्रश्न- हिन्दी के यथार्थवादी उपन्यासों का विवेचन कीजिए।
  15. प्रश्न- 'गोदान' में प्रेमचन्द ने मेहनत और मुनाफे की दुनिया के बीच की गहराती खाई को बड़ी बारीकी से चित्रित किया है। प्रमाणित कीजिए।
  16. प्रश्न- क्या प्रेमचन्द आदर्शवादी उपन्यासकार थे? संक्षिप्त उत्तर दीजिए।
  17. प्रश्न- 'गोदान' के माध्यम से ग्रामीण कथा एवं शहरी कथा पर प्रकाश डालिए।
  18. प्रश्न- होरी की चरित्र की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  19. प्रश्न- धनिया यथार्थवादी पात्र है या आदर्शवादी? स्पष्ट कीजिए।
  20. प्रश्न- प्रेमचन्द के उपन्यास 'गोदान' के निम्न गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए।
  21. प्रश्न- 'मैला आँचल एक सफल आँचलिक उपन्यास है' इस उक्ति पर प्रकाश डालिए।
  22. प्रश्न- उपन्यास में समस्या चित्रण का महत्व बताते हुये 'मैला आँचल' की समीक्षा कीजिए।
  23. प्रश्न- आजादी के फलस्वरूप गाँवों में आये आन्तरिक और परिवेशगत परिवर्तनों का 'मैला आँचल' उपन्यास में सूक्ष्म वर्णन हुआ है, सिद्ध कीजिए।
  24. प्रश्न- 'मैला आँचल' की प्रमुख विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  25. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणुजी ने 'मैला आँचल' उपन्यास में किन-किन समस्याओं का अंकन किया है और उनको कहाँ तक सफलता मिली है? स्पष्ट कीजिए।
  26. प्रश्न- "परम्परागत रूप में आँचलिक उपन्यास में कोई नायक नहीं होता।' इस कथन के आधार पर मैला आँचल के नामक का निर्धारण कीजिए।
  27. प्रश्न- नामकरण की सार्थकता की दृष्टि से 'मैला आँचल' उपन्यास की समीक्षा कीजिए।
  28. प्रश्न- 'मैला आँचल' में ग्राम्य जीवन में चित्रित सामाजिक सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
  29. प्रश्न- मैला आँचल उपन्यास को आँचलिक उपन्यास की कसौटी पर कसकर सिद्ध कीजिए कि क्या मैला आँचल एक आँचलिक उपन्यास है?
  30. प्रश्न- मैला आँचल में वर्णित पर्व-त्योहारों का वर्णन कीजिए।
  31. प्रश्न- मैला आँचल की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए।
  32. प्रश्न- मैला आँचल उपन्यास के कथा विकास में प्रयुक्त वर्णनात्मक पद्धति पर प्रकाश डालिए।
  33. प्रश्न- कथावस्तु के गुणों की दृष्टि से मैला आँचल उपन्यास की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  34. प्रश्न- 'मैला आँचल' उपन्यास का नायक डॉ. प्रशांत है या मेरीगंज का आँचल? स्पष्ट कीजिए।
  35. प्रश्न- मैला आँचल उपन्यास की संवाद योजना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  36. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (मैला आँचल)
  37. प्रश्न- चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी कला की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  38. प्रश्न- चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी 'उसने कहा था' का सारांश लिखिए।
  39. प्रश्न- कहानी के तत्त्वों के आधार पर 'उसने कहा था' कहानी की समीक्षा कीजिए।
  40. प्रश्न- प्रेम और त्याग के आदर्श के रूप में 'उसने कहा था' कहानी के नायक लहनासिंह की चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  41. प्रश्न- सूबेदारनी की चारित्रिक विशेषताओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  42. प्रश्न- अमृतसर के बम्बूकार्ट वालों की बातों और अन्य शहरों के इक्के वालों की बातों में लेखक ने क्या अन्तर बताया है?
  43. प्रश्न- मरते समय लहनासिंह को कौन सी बात याद आई?
  44. प्रश्न- चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी कला की विवेचना कीजिए।
  45. प्रश्न- 'उसने कहा था' नामक कहानी के आधार पर लहना सिंह का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  46. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (उसने कहा था)
  47. प्रश्न- प्रेमचन्द की कहानी कला पर प्रकाश डालिए।
  48. प्रश्न- कफन कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  49. प्रश्न- कफन कहानी के उद्देश्य की विश्लेषणात्मक विवेचना कीजिए।
  50. प्रश्न- 'कफन' कहानी के आधार पर घीसू का चरित्र चित्रण कीजिए।
  51. प्रश्न- मुंशी प्रेमचन्द की कहानियाँ आज भी प्रासंगिक हैं, इस उक्ति के प्रकाश में मुंशी जी की कहानियों की समीक्षा कीजिए।
  52. प्रश्न- मुंशी प्रेमचन्द की कहानियाँ आज भी प्रासंगिक हैं। इस उक्ति के प्रकाश में मुंशी जी की कहानियों की समीक्षा कीजिए।
  53. प्रश्न- घीसू और माधव की प्रवृत्ति के बारे में लिखिए।
  54. प्रश्न- घीसू ने जमींदार साहब के घर जाकर क्या कहा?
  55. प्रश्न- बुधिया के जीवन के मार्मिक पक्ष को उद्घाटित कीजिए।
  56. प्रश्न- कफन लेने के बजाय घीसू और माधव ने उन पाँच रुपयों का क्या किया?
  57. प्रश्न- शराब के नशे में चूर घीसू और माधव बुधिया के बैकुण्ठ जाने के बारे में क्या कहते हैं?
  58. प्रश्न- आलू खाते समय घीसू और माधव की आँखों से आँसू क्यों निकल आये?
  59. प्रश्न- 'कफन' की बुधिया किसकी पत्नी है?
  60. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (कफन)
  61. प्रश्न- कहानी कला के तत्वों के आधार पर प्रसाद की कहांनी मधुआ की समीक्षा कीजिए।
  62. प्रश्न- 'मधुआ' कहानी के नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  63. प्रश्न- 'मधुआ' कहानी का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
  64. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (मधुआ)
  65. प्रश्न- अमरकांत की कहानी कला एवं विशेषता पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- अमरकान्त का जीवन परिचय संक्षेप में लिखिये।
  67. प्रश्न- अमरकान्त जी के कहानी संग्रह तथा उपन्यास एवं बाल साहित्य का नाम बताइये।
  68. प्रश्न- अमरकान्त का समकालीन हिन्दी कहानी पर क्या प्रभाव पडा?
  69. प्रश्न- 'अमरकान्त निम्न मध्यमवर्गीय जीवन के चितेरे हैं। सिद्ध कीजिए।
  70. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (जिन्दगी और जोंक)
  71. प्रश्न- मन्नू भण्डारी की कहानी कला पर समीक्षात्मक विचार प्रस्तुत कीजिए।
  72. प्रश्न- कहानी कला की दृष्टि से मन्नू भण्डारी रचित कहानी 'यही सच है' का मूल्यांकन कीजिए।
  73. प्रश्न- 'यही सच है' कहानी के उद्देश्य और नामकरण पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  74. प्रश्न- 'यही सच है' कहानी की प्रमुख विशेषताओं का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  75. प्रश्न- कुबरा मौलबी दुलारी को कहाँ ले जाना चाहता था?
  76. प्रश्न- 'निशीथ' किस कहानी का पात्र है?
  77. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (यही सच है)
  78. प्रश्न- कहानी के तत्वों के आधार पर चीफ की दावत कहानी की समीक्षा प्रस्तुत कीजिये।
  79. प्रश्न- 'चीफ की दावत' कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  80. प्रश्न- चीफ की दावत की केन्द्रीय समस्या क्या है?
  81. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (चीफ की दावत)
  82. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी कला की समीक्षा कीजिए।
  83. प्रश्न- रेणु की 'तीसरी कसम' कहानी के विशेष अपने मन्तव्य प्रकट कीजिए।
  84. प्रश्न- हीरामन के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
  85. प्रश्न- हीराबाई का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  86. प्रश्न- 'तीसरी कसम' कहानी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
  87. प्रश्न- 'तीसरी कसम उर्फ मारे गये गुलफाम कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु का संक्षिप्त जीवन-परिचय लिखिए।
  89. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु जी के रचनाओं का वर्णन कीजिए।
  90. प्रश्न- क्या फणीश्वरनाथ रेणु की कहानियों का मूल स्वर मानवतावाद है? वर्णन कीजिए।
  91. प्रश्न- हीराबाई को हीरामन का कौन-सा गीत सबसे अच्छा लगता है?
  92. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (तीसरी कसम)
  93. प्रश्न- 'परिन्दे' कहानी संग्रह और निर्मल वर्मा का परिचय देते हुए, 'परिन्दे' कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  94. प्रश्न- कहानी कला की दृष्टि से 'परिन्दे' कहानी की समीक्षा अपने शब्दों में लिखिए।
  95. प्रश्न- निर्मल वर्मा के व्यक्तित्व और उनके साहित्य एवं भाषा-शैली का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  96. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (परिन्दे)
  97. प्रश्न- ऊषा प्रियंवदा के कृतित्व का सामान्य परिचय देते हुए कथा-साहित्य में उनके योगदान की विवेचना कीजिए।
  98. प्रश्न- कहानी कला के तत्त्वों के आधार पर ऊषा प्रियंवदा की 'वापसी' कहानी की समीक्षा कीजिए।
  99. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (वापसी)
  100. प्रश्न- कहानीकार ज्ञान रंजन की कहानी कला पर प्रकाश डालिए।
  101. प्रश्न- कहानी 'पिता' पारिवारिक समस्या प्रधान कहानी है। स्पष्ट कीजिए।
  102. प्रश्न- कहानी 'पिता' में लेखक वातावरण की सृष्टि कैसे करता है?
  103. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (पिता)

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